My thoughts, as I learn and unlearn things while trying to make sense of this mad and bad world.

Monday, 23 February 2009

सिन्धु भर सागर की तल्हति से बिन्दु भर मोती ...

2323 hours.

डूबते हुए इंसान को तिनके का सहारा मिल जाए तो उसे कठिनाई से लड़ने के लिए एक नई आशा और उम्मीद मिल जाती है। इसी आशा और उम्मीद की तलाश में कभी मैंने कई पर्वतों के शिखर और सागर की गहराईयों को नापा था। उस खोज से तो मुझे कुछ ना हासिल हुआ, मगर इस बात का एहसास ज़रूर हुआ की आशा और उम्मीद की किरणों का गौमुख हमारे ह्रदय के किसी कोने में है।

शायद ऊपर लिखे गए वाक्य और नीचे लिखी पंक्तियों में कोई सम्बन्ध नहीं हैं। मगर फिर भी, ना जाने क्यूँ, कभी कभी इस दिल में ख़याल आता है ...


कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है ।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है
यह तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है ।।।

मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है।
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आंसू है
जो तू समझे तो मोती है, जो न समझे तो पानी है ।।।

समंदर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
यह आंसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता ।
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता ।।।

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पनप बैठा तो हंगामा ।
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा ।।।

श्रेय: डॉक्टर कुमार विशवास

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